दंगल..!! दंगल...!! बरखा मुणोत,, नागपूर
वो कहते है ना,जब मामला गरम हो तो चुप रहो, सब शांत हो जाने का इंतजार करो और फिर अपनी बात कहो। मैं भी आज वही कर रही हूँ। थोड़ी शांती के बाद अपनी बात रख रही हूँ। इन दिनों दंगल बहुत चर्चा में है, आप सब समझ ही गए होंगे मेरा इशारा और इरादा क्या है? दंगल शब्द मात्र से ही कितना कुछ साफ हो जाता है। सबसे पहले ये बता दूँ, कि ना मैं मोदी की भक्त हूँ, ना राहुल की बस बात मानवता की है।इसलिए आप से संवाद कर रही हूँ। अभी दो दिन ही हुए है, त्यागी जी को अलविदा कह कर। खेद है, एक अच्छा प्रवक्ता पार्टी ने खोया है ।पूरी घटना कुछ ऐसे है कि, हमेशा की तरह राजीव त्यागी एक चर्चा सत्र का हिस्सा बने। वो अपनी हाजिर जवाबी के लिए मशहूर थे, हर बात का जवाब था उनके पास।दो दिन पहले भी घर से लाइव चर्चा सत्र में उनकी मौजूदगी थी। अचानक तबियत खराब हुईं और कुछ ही देर में वो सत्र उनकी आखरी बातचीत का ,उनकी स्मृति का पल बन गया। जीवन का अंत कब होगा, कैसे होगा, कहा होगा ये आज तक कोई नहीं जान पाया। ये अटल सत्य है।हम सब जानते है फिर भी सवाल पर सवाल है। यहाँ आकर दुख बदले में, कटघरे में, बयानों में आ गया है। जहां तक मुझे जानकारी है, उसके हिसाब से किसी भी चर्चा में आप भाग लेते है,तो आप उस कार्यक्रम का हिस्सा बन जाते है। जब राजीव जी असहज महसूस कर रहे थे तो , उनको अनदेखा क्यों किया? ये एक सवाल है। आप का कर्तव्य होता है, पर वहाँ वो कर्तव्य शुन्य था। ये होना चाहिए था। अफसोस है..बस। दूसरी बात चर्चा सत्र का मतलब क्या है? बुद्धिजीवी के हिसाब से आप किसी विषय पर अपनी बात रखे और अपना मत बता दें। यही होता है, जहाँ तक। लेकिन कब ये चर्चा से बहस , बहस से विवाद और विवाद से व्यक्तिगत मुद्दे विषय बन जाते पता ही नही लगता। चर्चा को सिर्फ चर्चा ही रहने दिया जाना चाहिए। ये सहयोजक पर होता है,उसे कैसे सब को लेकर चलना है। फिर अफसोस है.. यहाँ ये भी नहीं हुआ। ये चर्चा एक निमित है और निमित हमेशा निर्दोष होता है। लेकिन सोचने का विषय ये है कि , क्या अगर बहस व्यक्तिगत नहीं होती तो शायद आज राजीव हमारे बीच में होते। क्या उनकी असहजता को अनदेखा नहीं किया होता तो भी शायद..!! लेकिन इन सब के बीच ये भी बात है कि, टाइम बोलकर नहीं आता, उनका साथ तब तक ही था। बहुत से सवाल है, लेकिन सब मौन है। ये मौन कही ना कही ये कहता है कि, जो हुआ सही नहीं हुआ। बहुत सी बार घरों में भी बहस होती है, जहाँ एक को शांत रहने को कहा जाता है,ताकि ऐसे कोई घटना ना हो जाए कि बाद में पछतावा हो। ये मामला भी कही ऐसा तो नही था। अब बस शेष बात ही है और कुछ नहीं। आप समझदार है लेकिन आप की समझदारी ऐसे मामलों में ही पता चलती है। सिर्फ अच्छे मुकाम ही काफी नहीं है, यहाँ थोड़ी सी मानवता भी जरूरी है।