•   Thursday, August 28

आखिर कब तक...? बरखा मुणोत, नागपुर

अफसोस है,आँखों में आँसू हैं, शोक है, नाराजगी है और  शर्मिंदगी के साथ साथ न जाने क्या क्या है..क्योंकि आज फिर एक बार ,एक और निर्भया जिंदगी और मौत  का सफर तय कर रही हैं। एक बार फिर दिल दहलाने वाली  हैवानियत सामने आईं है। दुष्कर्म और हत्या करने की कोशिश... उफ हद होगी अब तो। निर्भया को कुछ दिन पहले ही न्याय मिला , वो न्याय क्या केवल सिर्फ एक केस के लिए किया गया न्याय था। आखिर कब तक अदालतों में ऐसे ही मामले दर्ज होंगे और मां बाप अपनी बेटी के  न्याय के लिए सालो साल इंतजार करते रहेंगे। खेलने की उम्र में कब तक किसी की दरिंदगी का खिलौने बन जायेगी हमारे देश की बेटी। मामला सुन कर रूह कांप जायेगी, पीरागढ़ी में रहने वाली मात्र तेरह साल की गरीब परिवार की बालिका जिसके साथ दुष्कर्म हुआ,उस समयअपने घर में अकेली थी। उसके माता पिता मजदूरी का काम करने घर से बाहर गए थे। बालिका ने विरोध करने की  कोशिश की तो उसके सिर और शरीर के बाकी हिस्सों पर कैंची से वार किया गया। उसे जान से मारने की पूरी कोशिश की गई। नाकामयाबी मिलने पर आरोपी फरार हो गए। गुप्त अंग से रक्त का तेज बहाव। ऐसे हालात में भी बालिक मदद के पड़ोसी के पास गईं। दिल्ली के एम्स में इलाज जारी है और महिला आयोग में मामला दर्ज है। परिवार वालो को पूरा आश्वासन दिया गया है कि अपराधियों को सजा मिलेंगी। इस मामले के बाद बहुत से सवाल मन में आ रहे हैं.. ऐसे मामलों में सजा देने का काम  परिवार वालो को क्यों नही दिया जाता। क्यों रेब पीड़ित को अपने साथ हुई घटना का वर्णन बार बार अदालतों में करना पड़ता है, ऐसे मसलो में क्यों तुरंत निर्णय नही लिया जाता। निर्भया  मामले के बाद भी आज फिर एक निर्भया अपनी ज़िंदगी से जग क्यों लड़ रही है। ऐसे अपराध के लिए सरकार क्यों कड़ा कानून नही बनाती। दिल्ली, मध्यप्रदेश और राजस्थान में क्यों ऐसे वारदात लगातार होती रहती है। आखिर क्यों..? कुछ मामलों में केस दर्ज नहीं होता तो कुछ में तारीख दम तोड़ देती है। एक तरफ तो कानून कहता है कि, यहाँ इंसाफ मिलेगा पर ये इंसाफ पैसों से क्यों दब जाता है। क्यों एक औरत को उसके साथ  हुईं  कुकर्म पर बार बार जवाब देना होता है। क्यों एक औरत को उसके साथ जो हुआ उसका बयान मनचलों के सामने देना होता है, और शर्म सार होना पड़ता है। इन सब सवालो के जवाब जिस दिन मिल  गए उस दिन समझ लेना देश की हर बेटी अपने घरों में भी सुरक्षित है। देश की हर बेटी की सुरक्षा के लिए कोई न कोई नियम कानून होना ही चाहिए। उनकी चीख अनसुनी नही की जानी चाहिए। बेटी किसी की भी हो, रौनक होती है, अभिमान होती है, शोभा होती है, फिर क्यों उनकी मासूमियत छीन ली जाती है। बेटियों  के लिए हम सब को मिलकर लड़ना होगा, उनको उनकी सुरक्षा का कवच देना होगा। आज  जंग सिर्फ बेटियों की नही है उसके अभिमान और सुरक्षा की है। जिसका हिस्सा हर पिता और माँ को बनना होगा ताकि फिर कोई बेटी निर्भया  ना बन पाए!!