काफ़िला चल पडा.... स्नेहल वानखेड़े, नागपुर
दीदी रीवा जा रहे है
भैया ५०० किलोमीटर है रीवा
कितना किलोमीटर है दीदी
५००
अब यहां तक आए है दीदी तो आगे भी पहुंच ही जाएंगे, यही रास्ता जाता है ना
हैदराबाद से नागपुर ५०० किलोमीटर है. नागपुर वो जैसे तैसे पहुंचे. आगे नागपुर से रीवा और ५०० किलोमीटर. जो उन्हें पता भी नहीं. बस घर जाना है जानते है क्यों उन्हें बताया गया है
दीदी लोग बोल रहे है आगे ३ महीने ऐसा ही रहने वाले है, कितने दिन रहेंगे यहां. कितने दिन हो गए अपने परिवार से मिले वो भी परेशान हो रहे है. अब पता नहीं हम वापस इधर आएंगे भी या नहीं.
क्रोनॉलजी, थेट्रोलॉजी कोई भी लॉजी हो जरा उसको छोड़िए और उनकी भावनाओं को समझिए.
आज अपने सामने एक १९ साल के एक लड़के के आंखो में आंसू आते हुए देखा है. बहुत कोशिश कर रहा था आंसू आंख से गिर ना जाए. पर आंखे नम हो ही जा रही थी. जैसे ही आंख में आंसू आते तुरंत अपने गमछे से पोछ लेता. आवाज़ बाहर नहीं निकल रही थी. पुलिस वालो ने और मैंने काफी अनुरोध किया
बेटा बैठ जा तेरा बैग भी बहुत भारी है उसे नीचे रख दे. बैठ आराम से पानी पी बिस्किट खा ले, थोड़ा आराम करके निकलना.
वो सब सुन रहा था पर शायद अपनी कमजोरी हमारे सामने आने नहीं देना चाह रहा था. लडख़ड़ाती आवाज़ में बस जाने की बात कर रहा था.
मम्मी पापा कह रहे है गाव आजा इसलिए मैं गांव जा रहा हूं
झोली फैलाई है कभी किसीने कभी आपके सामने. आज मेरे सामने मैंने औरतों को झोली फैलाते देखा. किस लिए? बस एक बिस्किट के पैकेट के लिए. एक २० Rs के बिस्किट का पैकेट. आंखे झुख गई थी शर्म से. बूढों को बच्चो को दोनों हाथ फैलाते देखा बस एक बिस्किट के लिए. फिर भी मुस्कुराते हुए देखा उन्हें. बच्चे के हाथ में बिस्किट दिया और पता नहीं क्या खुशी मिली उसे खिलखिलाने लग गया.
दीदी पानी है क्या
भैया माफ कीजिए पानी नहीं रखा
कोई बात नहीं दीदी आगे मिल ही जाएगा.
जहां आपको हिदायत दी जा रही है ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की उनके लिए इस कड़ी धूप में समय पे पीने के लिए पानी भी नहीं.
अगर आपको फिर भी लगता है ये लोग पागल है, ज़िद्दी है, किसी कि बिना सुने मनमानी कर रहे है. तो आपको फिर से सोचने कि जरूरत है. आपको ये और संक्रमण ना फैला दे इसकी चिंता है. मैं रोज़ बैंक जाने के लिए घर से बाहर निकलती हूं और यकीन मानिए शहरी लोग की हरकतें कई शर्मनाक है जिनसे सिगरेट की तलब नहीं रुक सकती वो इन्हें दोषी करार देने में व्यस्त है.
गांव में रहने वाले मा बाप अपने बच्चे के लिए उतने ही चिंतित है जितना शहर के लोग होते है अपने बच्चे को लेकर. शहर के लोग तो फिर भी फोन कॉल, वीडियो कॉल से जुड़े रहते है शायद पल पल की खबर भी रखते है. इनके पास वो सहूलियत भी नहीं.
ये हमारे जैसे पॉवर बैंक लेकर नहीं घूम रहे है जो कहीं भी फोन चार्ज हो जाए. इनके फोन बंद है किसी से बात नहीं हो पा रही. घर वालो को नहीं पता कब पहुचेंगे कैसे पहुंचेंगे. वो बैठे होंगे इंतजार में. बच्चे घर आएंगे.
ये कहानी टीवी के पर्दे से निकालकर नहीं लाई है. ये आंखो देखी है. टीवी के लॉजी से बाहर भावनाए पहुंचाने की एक कोशिश बस.